पल-पल तेरा अहसास
मरुस्थल की मरीचिका सा
दौड़ रहे हैं शिथिल प्राण
फिर भी आशा शून्य तक
पर शून्य से थोड़ा पहले
कहीं स्मृति-विस्मृति के बीच
संबोधन -असम्बोधन से परे
कहीं फैलती एक
अनगुंज गीत
सम्मोहित करती
लिए चलती उस पार
मन के पार ...
धरा के बंधनों को
करती तार-तार
विवशता के इन बन्धनों को
तोड़ती कोई अहसास
उसी शून्य से पहले
लिए मिलन की आस
प्रिय ! ये तुम हो या
तेरा अहसास.
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है ...
ReplyDeleteकहीं स्मृति-विस्मृति के बीच
संबोधन -असम्बोधन से परे
कहीं फैलती एक
अनगुंज गीत
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..अच्छी प्रस्तुति
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
मन के पार ...
ReplyDeleteधरा के बंधनों को
करती तार-तार
विवशता के इन बन्धनों को
तोड़ती कोई अहसास
उसी शून्य से पहले
लिए मिलन की आस
प्रिय ! ये तुम हो या
तेरा अहसास.
बहुत ही बढ़िया।
ब्लॉग जगत मे आपका हार्दिक स्वागत है । मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
सादर
गहरे अहसास की अहसास -क्या कहने !
ReplyDeleteगहरे एहसासात के साथ संप्रेषित भाव जगत की बात (कृपया अनुगूंज शब्द कर लें ).
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी भाव.....
ReplyDeleteअहसास..आह..
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