Thursday 15 September 2011

अहसास


पल-पल तेरा अहसास
मरुस्थल की मरीचिका सा
दौड़ रहे हैं शिथिल प्राण
फिर भी आशा शून्य तक
पर शून्य से थोड़ा पहले
कहीं स्मृति-विस्मृति के बीच
संबोधन -असम्बोधन से परे
कहीं फैलती एक
अनगुंज गीत
सम्मोहित करती
लिए चलती उस पार
मन के पार ...
धरा के बंधनों को
करती तार-तार
विवशता के इन बन्धनों को
तोड़ती कोई अहसास
उसी शून्य से पहले
लिए मिलन की आस
प्रिय ! ये तुम हो या
तेरा अहसास.

Saturday 20 August 2011

सिर्फ तुम ....


मेरे सावन में तुम
भावों की बदली बन कर
रुक-रुक , रह-रह कौंधती
तड़ित सी चीरती-फारती
सुन्न करती वेदना को
फिर आँखों से बरसती
बूंद-बूंद बहती दरिया सी
प्रवाह कभी मंद,कभी तीव्र
किसी अज्ञात महाकर्षण की ओर
अज्ञात किन्तु सतत
बोध कुछ और होने का
भीतर की पुकार
गर्म ज्वाला सी फूटती
फैलता लावा
वह होने में
फिर अपूर्णता का बोध
करता बारम्बार विस्फोट
मेरे होने की ज्वालामुखी
वह सिर्फ तुम..सिर्फ तुम.



Monday 11 July 2011

मेरी कविता

तुमसे मै हू
मुजःसे मेरी कविता
तुममे मै हू 
मै कविता 
मै निर्जःअर 
बहता हू 
आ आकर
तुममे मिल
जाता हू ॥