Thursday 15 September 2011

अहसास


पल-पल तेरा अहसास
मरुस्थल की मरीचिका सा
दौड़ रहे हैं शिथिल प्राण
फिर भी आशा शून्य तक
पर शून्य से थोड़ा पहले
कहीं स्मृति-विस्मृति के बीच
संबोधन -असम्बोधन से परे
कहीं फैलती एक
अनगुंज गीत
सम्मोहित करती
लिए चलती उस पार
मन के पार ...
धरा के बंधनों को
करती तार-तार
विवशता के इन बन्धनों को
तोड़ती कोई अहसास
उसी शून्य से पहले
लिए मिलन की आस
प्रिय ! ये तुम हो या
तेरा अहसास.

6 comments:

  1. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है ...

    कहीं स्मृति-विस्मृति के बीच
    संबोधन -असम्बोधन से परे
    कहीं फैलती एक
    अनगुंज गीत

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..अच्छी प्रस्तुति

    मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

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  2. मन के पार ...
    धरा के बंधनों को
    करती तार-तार
    विवशता के इन बन्धनों को
    तोड़ती कोई अहसास
    उसी शून्य से पहले
    लिए मिलन की आस
    प्रिय ! ये तुम हो या
    तेरा अहसास.

    बहुत ही बढ़िया।

    ब्लॉग जगत मे आपका हार्दिक स्वागत है । मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

    सादर

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  3. गहरे अहसास की अहसास -क्या कहने !

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  4. गहरे एहसासात के साथ संप्रेषित भाव जगत की बात (कृपया अनुगूंज शब्द कर लें ).

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  5. बहुत मर्मस्पर्शी भाव.....

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